एक बड़ा सा पहाड़, जो आसमान को छूता हुआ दिखाई देता था, उससे एक पत्थर टूटकर बहुत नीचे आ गिरा। वो पत्थर कई टुकड़ों में बदल गया और उस पत्थर को लगा जैसे उसकी ज़िंदगी ख़त्म हो गई, लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ देर बाद ही वहां एक कौआ आया और पत्थर के टुकड़ों को उठाकर एक घड़े में डाला। पत्थरों को लगा जैसे वो डूब गए, लेकिन ऐसा नहीं था। घड़े में पत्थर पड़ते ही घड़े का पानी ऊपर आ गया। कौए ने पानी पिया और प्यासा मरने से बच गया। यानी टूटे हुए पत्थरों ने बिखरकर भी एक बेज़ुबान की ज़िंदगी बचा ली। वो पत्थर, जब तक पहाड़ का हिस्सा था, तब तक सिर्फ़ दुनिया की नज़रों में था, लेकिन जब वो टूटकर बिखर गया, तो किसी के लिए ज़िंदगी का क़तरा बन गया। दोस्तों शायद इसी का नाम है ज़िंदगी, जो टूटकर भी नहीं टूटती और बिखरकर भी किसी की ज़िंदगी संवारने की ताक़त रखती है।
फ़ुर्सत मिले तो सोचकर देखना.... जब कभी.
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2 comments:
ये टैम्पलेट अच्छा लगा सर, बस पोस्ट हरी-हरी रखिए लेकिन स्याही का रंग बदल दीजिए...बाकी बहुत अच्छा है...और हां ये वर्ड वेरीफिकेशन हटा दीजिए टिपियाने वालों को इससे खासी मुसीबतें होती हैं।
sandeep bhai shukriya, comment ka bhi aur sujhao ka bhi.
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