Sunday, September 7, 2008

चांद लाल है...?







देखो आज चांद लाल है,
किसी को चांदनी से मलाल है।
उम्र भर ज़िंदगी से की मोहब्बत,
पर आज सांसों की डोर सुर्ख़ लाल है।
ख़्वाबों की दुनिया फिर से बुलाती है,
पर दिल को रोकता उलझनों का जाल है।
अनजानी सदा ने हरे किए ज़ख़्म सारे,
रुसवाई से अब तक इश्क़ बेहाल है।
गुनाहों का मैं मांगने बैठा जवाब,
मुद्दतें गुज़रीं अब भी बाक़ी एक सवाल है।
छिपाते रहे दुनिया से हर वक़्त जिसे,
आंचल से गिरकर बिखरा तो देखा गुलाल है।
`पंकज`के हिस्से आया कीचड़ तो ग़म नहीं,
पर इस गुल में ख़ुशबू ना होने का मलाल है।

3 comments:

Sandeep Singh said...

...सर, आपका मलाल जायज हो सकता है...पर मुझे तो यही लगता है कि दोष नासा रंध्रों का है...नहीं तो अब तक मलाल वाली महक दिलों दिमाग में घर कर चुकी होती... :)

Unknown said...

इस पर कोई कमेंट नही आ रहे हैं....लगता है अभी और मार्केटिंग की जरूरत है

Unknown said...

kaun sa kichad aur kaun se khushboo