मुश्क़िलों में हौसले आज़माना सीख ले, दर्द में भी यार मेरे मुस्कुराना सीख ले...! मुंबई में हुई आतंकी घटना की गंभीरता और उसके दर्द को महसूस करते हुए पूरी संजीदगी के साथ माफ़ी सहित कुछ कहने की हिम्मत कर रहा हूं। माफ़ी इसलिए क्योंकि, बहुत से लोग हालात और हादसे में पीड़ित लोगों का ख़्याल किए बिना काफ़ी कुछ कह गए और बम धमाके के बाद उठे सियासी तूफ़ान में बह गए। मगर मैं नहीं बहूंगा, क्योंकि ऐसा-वैसा कुछ नहीं कहूंगा। हां, इतना ज़रूर कह सकता हूं कि, जो कहूंगा सच कहूंगा और इस कड़वे सच में भी आपके लबों पर एक मासूम मुस्कान आ सकेगी। और वो भी तब, जब आतंकी धमाकों के बाद भी सीरियल ब्लास्ट थमे नहीं।
चलिए तो शुरू करते हैं, शिव से। नहीं, भगवान शिव नहीं, वो तो पालनहार हैं, वो कहते नहीं करते हैं। हम बात कर रहे हैं शिवराज पाटिल की, जिनके राज में आतंकी बार-बार अपना राज कायम करते रहे। कभी धमकियों से तो कभी धमाकों से। मगर, ऐसा धमाका अब तक नहीं हुआ था, होना भी नहीं चाहिए। पर धमाका तो हुआ और क्यों हुआ, इसी सवाल का जवाब देने के चक्कर में शिवराज बन गए शत्रुघ्न सिन्हा...यानी ख़ामोशशशश। मुंबई में आतंकी ख़ामोश हुए तो सियासत की दुनिया में होने लगे सीरियल ब्लास्ट। पहला ब्लास्ट दिल्ली में हुआ और वो भी कांग्रेस के घर में और देश के गृह मंत्री शिवराज पाटिल के दिल पर। धमकी और धमाके के बेहद ख़तरनाक़ फ़र्क को नहीं समझने की उन्हें बराबर सज़ा मिली। शिव से छिन गया राज और सिर से उतर गया होम मिनिस्टर का ताज। ख़ैर इस्तीफ़े के बाद शिवराज पाटिल ख़ुद को `हल्का ` महसूस करने लगे, तो क़द में छोटे और थोड़े-से मोटे उनके सियासी भाई पाटिल नंबर टू यानी आर आर पाटिल भी `हल्के ` होने के लिए बेचैन होने लगे। बेचैनी बढ़ गई तो उन्होंने पूरी आतंकी वारदात को ही हल्का बता दिया। बोले- आतंकी तो पांच हज़ार लोगों को मारने आए थे, सिर्फ़ पांच सौ के आस-पास लोग ही प्रभावित हुए। बड़े शहरों में ऐसी छोटी घटनाएं होती रहती हैं। दरअसल, आतंकी हमले की गंभीरता और उसका असर उन्हें तब महसूस हुआ, जब उनका ये बयान शोले बन गया और पाटिल ख़ुद शोले के ठाकुर की तरह लाचार हो गए। ये दूसरा धमाका था, जो मुंबई में महसूस किया गया और तीसरा सियासी आरडीएक्स यहीं फटा। माननीय मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ताज में पहुंचे बॉलीवुड का ग्लैमर लेकर। राम गोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज के ताज़ा हालात का जायज़ा लेने पहुंचे देशमुख का छिन गया सुख।
अब रामगोपाल वर्मा साथ होंगे तो आग तो लगनी ही थी, लेकिन रामू की आग में झुलस गए देशमुख और हो गए नि:शब्द। विलासराव तो ख़ामोश हो गए, लेकिन हाईकमान ने उनकी सियासी चाय में कर दी चीनी कम और उन्हें नहीं रहने दिया महाराष्ट्र का सी एम। सियासत की दुनिया में तीन बड़े सीरियल ब्लास्ट होने के बाद जब धुआं छंटने लगा, तो इस आग में कूद गए पहली और संभवत: आख़िरी बार मुख्यमंत्री (केरल) बने वी एस अचुत्यानंदन। खांटी लाल सलाम के झंडाबरदार अचुत्यानंदन एक शहीद के घर पर हुई घटना (मुंबई आतंकी हमले में शहीद एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता की सी एम अचुत्यानंदन से नाराज़गी) पर उबल पड़े। अचुत्यानंदन भी बम की तरह फटे और वो भी मीडिया के सामने। शहीद के घर जाने के मुद्दे पर उनके अनचाहे बयान ने एक और तूफ़ान खड़ा कर दिया
पहली बार हिंदुस्तान पर हुए इतने बड़े आतंकी हमले के ख़िलाफ़ जो जज़्बा देशवासियों ने दिखाया, उसे लाल खेमे ने फ़ौरन भांप लिया। पूरा देश आतंकियों के एक्शन और नेताओं के अजब से रिएक्शन के ख़िलाफ़ लाल हो चुका था। और सबके हाथों में रोशन हो गया करो या मरो जैसा जज़्बा। इसीलिए लेफ्ट के दिग्गजों ने इस मामले में राइट बयान दिया और सी एम अचुत्यानंदन को रॉन्ग (गलत) क़रार दिया। ख़ैर देर आए दुरुस्त आए और अचुत्यानंदन ने भी अपने बयान को लेकर दबी ज़ुबान से अफ़सोस ज़ाहिर किया। मगर, राजनीति में चार धमाकों के बावजूद देश को कोई अफ़सोस नहीं हुआ होगा, क्योंकि अब तक तो ब्लास्ट का दर्द सिर्फ़ जनता महसूस करती थी, लेकिन इस बार सियासत की पांच सितारा दुनिया में आतंकियों ने जो धमाका किया है, उससे जनता और नेता के बीच का फ़र्क कुछ कम ज़रूर हुआ है। मगर, मक़सद तो ये है कि, आतंकी घटना का दर्द और उसकी दहशत कम करने की ज़िम्मेदारी जिन (नेता) पर है, उन्हें हर हाल में ऐसे हमलों की भनक लगते ही ख़ुद अपने एक्शन से किसी बम की तरह फट जाना चाहिए।
वंदे मातरम.....
Friday, December 5, 2008
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1 comment:
sir, kabhi mujhe bhi yaad kar lijiye....mera number to hoga hi 9910480972.waise 14 feb ke liye congratulation...aakhir vanvaas khatam hua
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